time concept in sanatan dharma

राजीव हर्ष

समय साक्षी है सृष्टि के निर्माण का, ब्रह्मांड के विस्तार का, जीवन की उत्पत्ति का मानव के विकास का, ब्रह्मांड में होने वाले हर परिवर्तन का। बहुत से वैज्ञानिकों ने, दार्शनिकों ने समय की बहुत सी परिभाषाएं दी है। हर एक ने समय को अपने ढंग से व्याख्यायित किया है। विज्ञान ने समय को सापेक्ष बताया, चौथा आयाम बताया, भौतिक राशि माना। दार्शनिकों और मनोवैज्ञानिकों  ने इसे मानवीय चेतना की अनुभूति माना। वहीं आम आदमी ने परिवर्तन के बीच के अंतराल को समय के रूप में पहचाना।

बिग बेंग या महाविस्फोट से ब्रह्मांड का जन्म होने के सिद्धांत को मानने वाले वैज्ञानिकों का मानना है कि बिगबेंग से पहले समय का अस्तित्व ही नहीं था। ब्रह्मांड अत्यंत सघन अवस्था में था। महाविस्फोट होने पर ब्रह्मांड और समय का जन्म साथ साथ हुआ। परंतु ये वैज्ञानिक यह बताने में असमर्थ है कि महाविस्फोट से पूर्व को हम क्या कहेंगे और ब्रहृमाण्ड अत्यंत सधन अवस्था में कब से था । परमात्मा को मानने वाले बिगबैंग या महाविस्फोट के सिद्धांत को नहीं मानते वे सृष्टि को अनादि अनंत और समय को परमात्मा का गुण मानते हैं। उनके अनुसार यह चराचर जगत ईश्वरीय चेतना का ही विस्तार हैं।

बहुत से विद्वान समय को मानवीय बोध की उपज मानते हैं। उनका मानना है कि बुद्धि के विकास के साथ ही इंसान ने अपने आस पास होने वाले परिवर्तनों को देखना, जानना-पहचानना शुरू कर दिया, विभिन्न वस्तुओं और पिण्डों में होने वाली गतियों को अनुभूत करना शुरू किया। अपने आस पास होने वाले परिवर्तनों के आधार पर समय को पहचाना। परिवर्तनों के आधार पर उसने समय को भौतिक राशि की तरह मापने का प्रयास किया। दिन,रात और ऋतु परिवर्तन के आधार पर समय को मापना शुरू कर दिया। यहीं से आरम्भ हुआ काल गणना का सिलसिला। यदि बोध नहीं होता, चेतना नहीं होती तो निश्चित रूप से समय भी नहीं होता।

कुछ ऐसे भी विद्वान हैं जो समय को मानते ही नहीं हैं। उनके मुताबिक भूतकाल और भविष्यकाल का कोई अस्तित्व नहीं है। भूतकाल स्मृतियों में है भविष्यकाल कल्पनाओं में और वर्तमान क्षण इतना छोटा है कि उसे अनुभूत करें उससे पहले ही वह भूतकाल बन जाता है।

धारणाएं अनेक हैं उनके साथ उनके प्रबल तर्क हैं लेकिन एक बात हम सभी महसूस करते हैं कि समय निरंतर गतिमान है वह निर्बाध गति से आगे बढ़ता जा रहा है उसमें कोई मानवीय हस्तक्षेप संभव नहीं है। जो लोग समय के साथ हैं वे निरंतर आगे बढ़ रहे हैं और जो लोग समय की महत्ता को, गतिशीलता को नहीं पहचान पा रहे हैं वे पिछड़ते जा रहे हैं। समय के साथ आगे बढऩे के लिए जागृत होना, चैतन्य होना जरूरी है। नव वर्ष के आगमन पर हम आकलन करें कि हमने जीवन के कितने बसंत गुजार दिए हैं, कितने अर्थपूर्ण,कितने सार्थक।