आजादी के बाद जब देश ने शिक्षा के महत्व को जाना तो अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते पढाई बीच में छोड़ रोटी रोजी कमाने में जुटे लोगों के भीतर भी उच्च शिक्षा हासिल करने की ललक जगने लगी। बीकानेर में प्रो नाथूराम खड़गावत और शिक्षा, साहित्य तथा समाजसेवा से जुड़ी हस्तियों ने इन लोगों को अपनी शिक्षा का सफर पूरा करने का अवसर देने के लिए प्रयास आरम्भ किये। इन्हीं प्रयासों के तहत श्री मूलचंद पारीक, श्री गिरधरदास मूंधड़ा, श्री नरोत्तम स्वामी, श्री शम्भूदयाल सक्सेना, श्री अगर चंद नाहटा, श्री फाल्गुन गोस्वामी, श्री सत्यनारायण पारीक के प्रेरण और निर्देशन में अगस्त क्रांतिदिवस के दिन 9 अगस्त 1948 को भारतीय विद्यामंदिर की स्थापना की गई।
श्री सत्यनारायण पारीक, श्री माधोदास व्यास, श्री सोमेश्वर पण्ड्या श्री भंवरलाल महात्मा और श्री बाबूलाल व्यास के सहयोग से बनी इस संस्था को श्री खुशाल चंद डागा, श्री रामगोपाल मोहता, श्री श्रीगोपाल मोहता, श्री भागीरथ मोहता और श्री मोती चंद खजांची ने आर्थिक सहयोग दिया।
19 अगस्त 1948 को रक्षाबंधन के पावन अवसर पर राजस्थान के तत्कालीन शिक्षामंत्री ने बीकानेर में भारतीय विद्यामंदिर का उद्घाटन किया। संस्था का मुख्य उद्देश्य उन लोगों को शिक्षित करना था जो आगे पढना तो चाहते थे किंतु आर्थिक अभाव और अवसरों की कमी के चलते शिक्षा अधूरी छोड़ अपने परिवार को आर्थिक सम्बल देने के लिए काम काज में जुटे हुए थे। महिलाओं और बच्चों को शिक्षित करना और भारतीय संस्कृति पर शोध करना भी संस्था के उद्देश्यों में शामिल था।
वर्ष 1954 में भारतीय विद्यामंदिर ने राजस्थान बालभारती प्राथमिक विद्यालय का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया। इस प्राथमिक विद्यालय की स्थापना बीकानेर में 15 अगस्त 1949 को हुई थी।
भारतीय विद्यामंदिर शोध प्रतिष्ठान की स्थपना एक जुलाई 1957 को की गई और एक अप्रेल 1970 को केंद्रीय परिषद का गठन किया गया। तब से लेकर अब तक संस्थान की ओर से शिक्षा साहित्य और संस्कृति पर कई महत्वपूर्ण शोध कार्य किये गए हैं।
भारतीय विद्यामंदिर ने 1971 में त्रैमासिक शोधपत्रिका वैचारिकी का प्रकाशन आरम्भ करने के साथ ही साहित्य संस्कृति और इतिहास पर पुस्तकों का प्रकाशन आरम्भ किया। 1971 से लेकर अब तक भारतीय विद्यामंदिर भारतीय संसकृति और राजस्थान की संस्कृति के विविध पहलुओं को उजागर करने वाली अनेक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। इनमें गोगाजी चौहान री राजस्थानी गाथा, प्राचीन काव्यों की रूप परम्परा, नाग दमण, रणमल छंद , मुक्तक, अमिय हलाहल मद भरे ,भारतीय तत्व चिंतन, राजस्थानी लोक महाभारत, सुखी जीवन, कृष्णावतार, वामन विराट प्रमुख हैं।
चार दशक तक काम सुचारू ढंग से चलता रहा फिर मुद्रा स्फीति और आर्थिक बोझ के चलते संस्थान को चलाना बहुत कठिन हो गया। ऐसे कठिन समय में सेठ गोविंद दास मालपानी, ठाकुर प्रेम सिंह, श्री शंकर सहाय सक्सेना और श्री अनिल बर्डिया से आर्थिक सहयोग मिलने से संस्थान संकट से उबर गया। सेठ गिरधरदास मूंधडा़ भारतीय विद्यामंदिर के सदस्य और राजस्थान बाल भारती के अध्यक्ष थे वे शुरुआत से ही संसथान को आर्थिक और प्रशासनिक सहयोग दे रहे थे। उन्होंने बालभारती विद्यालय के लिए भवन बनाने की योजना बनाई जिसके लिए जमीन पहले ही खरीदी जा चुकी थी। उनके आकस्मिक निधन से योजना पर अनिश्चितता के बादल छा गए। सेठ गिरधरदास मूंधडा़ के दोनों पुत्र श्री माधोदास मूंधड़ा और श्री जगमोहन दास मूंधड़ा भारतीय विद्यामंदिर से जुड़े हुए थे। श्री माधोदास मूंधड़ा ने चार दशक पुराने संस्थान को मदद देने का निर्णय किया । भारतीय विद्यामंदिर की प्रबंध समिति के आग्रह पर श्री चैरिटी ट्रस्ट संस्थान को हर तरह की वित्तीय मदद देने को सहमत हो गया। री माधोदास मूंधड़ा इस श्री चैरिटी ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी थे। एक अप्रेल 1988 को श्री चैरिटी ट्रस्ट ने श्रीगिरधरदास मूंधड़ा शिक्षण संस्थान का गठन किया जो भारतीय विद्यामंदिर के अंतर्गत कार्यरत सभी संगठनों एवं गतिविधियों का अधिशासी निकाय बना । इस अवसर पर सभी संगठनों को नया नाम दिया गया।
1 गिरधर दास मूंधड़ा विद्यामंदिर रात्री सीनियर उच्चमाध्यमिक विद्यालय ( भारतीय विद्यामंदिर रात्री विद्यालय)
2 गिरधरदास मूंधड़ा बाल भारती (राजस्थान बाल भारती)
3 भारतीय विद्यामंदिर शोध प्रतिष्ठान
4 गिरधर दास मूंधड़ा शिक्षण संस्थान केंद्रीय कार्यालय ( भारतीय विद्यामंदिर केंद्रीय कार्यालय) इन संगठनों का नाम तो बदला गया लेकिन इनमें कोई प्रशासनिक फेरबदल नहीं किया गया। जिन उद्देश्यों को लेकर संस्थान की स्थापना की गई थी उनमें भी कोई बदलाव नहीं किया गया। वे उद्देश्य थे –
अभावग्रस्त बालक – बालिकाओं को स्तरीय शिक्षा उपलब्ध करवाना
जिन वयस्कों को अध्ययन के पर्याप्त अवसर नहीं मिले उन्हें सायंकालीन शिक्षा मुहैया करवाना
महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्म निर्भार बनाने के लिए उन्हें परम्रागत व्यवसाय और शिल्प का प्रशिक्षण देना
भारतीय संस्कृति और परम्पराओं का प्रचार प्रसार करना
प्राचीन कलाकृतियों ,पाण्डुलिपियों , और शिलालेखों को संग्रहण और संरक्षण करना
भारतीय संस्कृति के संबंध में शोध के लिए संग्रहालय और पुस्तकालय की स्थापना करना
भारतीय विद्यामंदिर के विचारों, योजनाओं और प्रयासों की सराहना अनेकों विद्वानों और संगठनों ने की और भारतीय विद्यामंदिर के काय्रकलापों का हिस्सा बनने की इच्छा जताई। इनमें से एक थी देश के निर्माण उद्योग की शीर्ष कम्पनी सिम्पलेक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर्स लिमिटेड। कम्पनी के प्रबंधन की भारतीय संसकृति के संरक्षण और प्रचार प्रसार में गहरी रुचि थी और वे इस कार्य में भागीदार बनने के इच्छुक थे।
सामाजिक क्षेत्र में किये जा रहे कार्यों को विस्तार देने की इच्छा लेकर वर्ष 2005 में सिम्पलेक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर भारतीय विद्यामंदिर का आधिकारिक मददगार बन गया। इसके पश्चात भारतीय विद्यामंदिर के प्रकाशन विभाग को कोलकाता स्थानांतरित कर दिया गया। भारतीय विद्यामंदिर की शोध पत्रिका वैचारिकी मई-जून 2010 से त्रैमासिक से द्वैमासिक हो गई। वैचारिकी की लोकप्रियता बढती गई इसके हर अंक की प्रसार संख्या 4500 है। प्राचीन भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों और हमारी परम्पराओं पर विद्वानों और पंडितों के शोध कार्यों पर पुस्तकों और पत्र पत्रिकाओं के प्रकाशन को गति दी गई। भारतीय विद्या मंदिर समय –समय पर भरतीय इतिहास, संस्कृति, साहित्य, कला, धर्म अध्यात्म और विज्ञान जैसे विषयों पर नियमित रूप से संगोष्ठियों और सम्मेलनों का आयोजन करता है। इन आयोजनों में देश विदेश के विद्वान पूरे उत्साह के साथ हिस्सा लेते हैं।
इन दानों संगठनों ने यह महसूस किया कि कुशल श्रमिकों का अभाव देश की ज्वलंत समस्या है इसका समाधान किया जाना चाहिए। हमारे देश की 85 प्रतिशत आबादी को प्राथमिक शिक्षा से आगे अध्ययन करने का अवसर ही नहीं मिल पाता और जो 15 प्रतिशत लोग आगे की पढाइ्र करते हैं उनका पूरा ध्यान डिग्री हासिल करने पर लगा रहता है। उनके कौशल विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। उन्हें ऐसा कोई हुनर नहीं सिखया जाता जिसके दम पर वे कोई रोजगार हासिल कर सकें। इस समस्या से सरकार और उद्योग दोनों को परेशानी हो रही है। इससे निपटने के लिए संस्थान बने, पाठ्यक्रम बने मगर कोई समाधान नहीं निकल पाया है।
समस्या की जड़ें गहराई तक फैली हुई है। ग्रामीण युवा शहरी जीवन शैली को अपनाना चाहता है वह धीरे धीरे अपने पारम्परिक पुश्तैनी हस्तशिल्प से दूर हो रहा है वह नौकरी हासिल करने के लिए पढाई कर रहा है या फिर आधुनिक काम धंधों को अपना रहा है। इससे कौशल का विकास नहीं हो रहा है। बहुत से लोग अकुशल श्रमिक वर्षों तक कुशल श्रमिकों के अधीन काम करते हैं और अर्द्ध कुशल रह जाते हैं। इससे कुशल श्रमिकों की मांग की पूर्ति नहीं हो पाती।
इस परिसिथति से उबरने के लिए भारतीय विद्यामंदिर और सिम्पलेक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर्स लिमिटेड ने श्रमिक विकास कार्यक्रम की शुरुआत की। यह कार्यक्रम श्रमिकों के विकास के लिए एक अभिनव पाठ्यक्रम है। इसमें श्रमिकों को निर्माण स्थलों पर सिविल इंजीनियरिंग के व्यवहारिक और सैद्धांतिक पक्ष की जानकारी देने के साथ ही मानवीय मूल्यों और शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में भी जानकारी दी जाती है।
श्रमिकों के साथ सीधी बातचीत कर उनसे काम करवा सके ऐसे सुपरवाइजर और फोरमैन की जरूरत बहुत ज्यादा है। इसके लिए जरूरी है कि सुपरवाइजर और फोरमैन को सिविल इंजीनियरिंग के व्यवहारिक और सैद्धांतिक पक्ष का तो ज्ञान हो ही साथ ही उसमें प्रबंधकीय गुण और दूसरों से काम करवाने की क्षमता भी हों। ये सभी गुण उनमें वर्षों के अनुभव के बाद ही आ पाते हैं। देश में लगभग 3500 डिग्री इंजीनियरिंग और लगभग इतने ही डिप्लोमा इंजीनियरिंग कालेज हैं किंतु सुपरवाइजर ओर फोरमैन तैयार करने वाला एक भी कालेज देश में नहीं है। इन हालात को देखते हुए भारतीय विद्यामंदिर और सिम्पलेक्स इन्फ्रास्ट्रक्चर्स लिमिटेड ने सुपरवाइजर विकास काय्रक्रम की शुरुआत की है। इस काय्रक्रम के तहत संस्थान के और स्वयं के विकास के प्रति समर्पित सकारात्मक सोच वाले सुपरवाइजर और फोरमैन तैयार करने के लिए प्रशिक्षणार्थियों को सिविल इंजीनियरिंग के प्रमुख विषयों का सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान दिया जाता हे। उन्हें व्यवहार और संवाद में निपुण होने के तरीके सिखाए जाते हैं। मनोविज्ञान और दर्शन का ज्ञान दिया जाता है। शारीरिक स्वास्थ्य की शिक्षा दी जाती है।
प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने और प्रशिक्षण देकर उन्हें कुशल और योग्य बनाने के उद्देश्य से ग्रेजुएट इंजीनियर्स और डिपलेमा इंजीनियर्स के लिए जूनियर इंजीनियर्स डवलपमेंट प्रोग्राम और ग्रेजुएट इंजीनियर्स ट्रेनी डवलपमेंट जैसे प्रोग्राम बनाए गए हैं।
ग्रेजुएट इंजीनियर्स ट्रेनी डवलपमेंट प्रोग्राम के तहत सिविल, मेकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों को तकनीकी कौशल के साथ साथ प्रबंधकीय गुर भी सिखाए जाते हैं ताकि उनमें समझ बढे़, समूह के साथ काम करने के गुण विकसित हों और परियोजनाओं के कार्यों को दक्षता पूर्वक पूर्ण कर सके।
प्रशिक्षणार्थियों के समग्र विकास के लिए सभी काय्रक्रमों में मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र और शारीरिक स्वास्थ्य जेसे विषयों पर सत्र आवश्यक रूप से होते हैं।
भारतीय विद्यामंदिर की ओर से संचालित कार्यक्रम
1- स्टोरकीपर डवलपमेंट प्रोग्राम
2- हैल्थ एण्ड सेफ्टी डवलपमेंट प्रोग्राम
3- ह्यूमन रिसोर्स एण्ड एडमिनिस्ट्रेशन डवलपमेंट प्रोग्राम
4- बिल्डिंग मेंटेनेंस डवलपमेंट प्रोग्राम
5- मशीन ऑपरेटर एण्ड मेकेनिक डवलपमेंट प्रोग्राम
6- प्लांट सुपरवाइजर, प्लांट सुपरिंटेंडेंट एण्ड प्लांट इंजीनियर डवलपमेंट प्रोग्राम
7- कॉमर्शियल डवलपमेंट प्रोग्राम
सभी व्यावहारिक एवं सैद्धांतिक प्रशिक्षण कार्यक्रम सिम्पलेक्स के कार्यस्थलों पर संचालित होते हैं। प्रशिक्षण के लिए जरूरी आधारभूत संरचनाएं सिम्लेक्स की ओर से ही उपलब्ध करवाई जाती है। प्रशिक्षणार्थियों को सिम्लेक्स के विशेषज्ञ और बाहरी विशेषज्ञ प्रशिक्षण देते हैं। इन कार्यक्रमों के तहत अब तक लगभग 15 हजार श्रमिक,एक हजार सुपरवाइजर, 500 फोरमेन, 150 इंजीनियर ,350 ओवरसियर , 200 स्टोरकीपर तथा 100 कॉमर्शियल एडमिनिस्ट्रेशन ऑफिसर्स को प्रशिक्षित किया जा चुका है। भारतीय विद्यामंदिर मजबूत एवं निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर भारत के निर्माण के लिए अपने सात दशक पुराने सबको शिक्षा सबको ज्ञान के सिद्धांत पर निरंतर आगे बढ़ रहा है।