भारतीय विद्यामंदिर शोध प्रतिष्ठान
भारतीय विद्यामंदिर बीकानेर की आम जनता और छात्रों के शिक्षा उपलब्ध कराने में जुटा हुआ था। भारतीय विद्यामंदिर की अधिशासी परिषद ने अपने कार्य क्षेत्र का विस्तार कर भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के संरक्षण के उद्देश्य से शोध कार्यों में योगदान देने का विचार किया। इस पर हिंदी साहित्यकार एवं चिंतक श्री अक्षयचंद्र शर्मा ने शोध संस्थान की स्थापना करने का प्रस्ताव रखा। अधिशासी परिषद के अध्यक्ष श्री नरोत्तम दास स्वामी एवं श्री अगरचंद नाहटा ने श्री अक्षयचंद्र शर्मा के विचार का समर्थन किया। एक जुलाई 1957 को बीकानेर में भारतीय विद्यामंदिर शोध प्रतिष्ठान की स्थापना की गई।
प्रतिष्ठान के सदस्यों एवं सहयोगियों ने राजस्थान के एवं भारत के इतिहास को दर्शाने वाले प्राचीन भारतीय ग्रंथों, पाण्डुलिपियों एवं कलाकृतियों का संकलन किया। शोध प्रतिष्ठान के प्रमुख कार्य निम्न लिखित हैं।
- प्राचीन पाण्डुलिपियों, लोकसाहित्य, लोक कथाओं, कहावतों एवं मुहावरों की खोज, उनका संकलन, अनुवाद एवं प्रकाशन।
- लोकगीतों एवं लोक नृत्यों पर शोध।
- राजस्थान के विशेष तौर पर बीकानेर की कला की विविध विधाओं पर अध्ययन करना और कलाकृतियों का संग्रहण करना।
- सामाजिक एवं सांस्कृतिक परम्पराओं एवं उनके प्रभावों का अध्ययन करना।
- राजस्थान के वास्तुशिल्प और निर्माण के तौर तरीकों का अध्ययन करना।
देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के 225 से अधिक शोध कर्ताओं ने भारतीय विद्यामंदिर के द्वारा किये गए शोध का लाभ उठाया है। डा नामवर सिंह एवं डा हीरालाल माहेश्वरी जैसे विख्यात विद्वान एवं शिक्षा विद इस संस्थान से जुड़े रहे हैं। संस्थान का साहित्यिक कृतियों का संग्रह अद्वितीय है। संस्थान के पुस्तकालय में 2000 से अधिक पाण्डुलिपियां 13 हजार से अधिक पुस्तकें, सरस्वती, चांद, माधुरी, वरदा, जैसी पुरानी पत्रिकाएं और शोध से जुड़े विभिन्न प्रकाशन उपलब्ध हैं।
भारतीय संस्कृति संसद
भारतीय संस्कृति के संरक्षण और उसके प्रचार प्रसार में जुटे दिग्गजों श्री माधोदास मूंधड़ा , श्री रामनिवास टांटिया , श्री हरिप्रसाद माहेश्वरी और श्री गोकुल दास दम्मानी की कविगुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर की जयंती के शुभ अवसर पर 8 मार्च 1955 को हुई बैठक में साहित्य, कला और दर्शन को बढ़ावा देने के लिए भारतीय संस्कृति संसद की स्थापना करने का निर्णय किया गया। 16 जून 1955 केा बंगाल के प्रख्यात विद्वान डा काली दास नाग को भारतीय संस्कृति संसद का प्रथम अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस अवसर पर श्री ललित प्रसाद शुक्ल के नेतृत्व में साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया । तब से भारतीय संस्कृति संसद भारतीय इतिहास, साहित्य, कला, धर्म, दर्शन, संस्कृति एवं भाषा के प्रचार प्रसार के लिए विविध कार्यक्रम आयोजित करती आ रही है । संस्था के संस्थापक सदैव हिंदी भाषा के विकास और प्रसार के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं । यह सुनिश्चितकरने के लिए कि साहित्य केवल लेखकों और बुद्धिजीवियों के लिए ही नहीं आम जन के व्यवहार के लिए भी है भारतीय संस्कृति संसद की ओर से आमजन के लिए नाटक, संगोष्ठी, वाद-विवाद प्रतियोगिता, जैसे आयोजन कराए जाते रहे हैं ।
देश के जाने माने लेख्कों, कवियों, चिंतकों एवं चिारकों ने समय – समय पर भारतीय संस्कृति संसद की ओर से भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से आयोजित काय्रक्रमों में उत्साह पूर्वक भाग लेकर अपने ज्ञान और विचारों को अभिव्यक्त किया है।